Monday 27 October 2014

सही नसीहत




सही नसीहत

Sat, 18 Oct 2014

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार तीनों सेनाओं के शीर्ष कमांडरों को संबोधित करते हुए यह जो कहा कि नए खतरों से मुकाबले के लिए नई सोच और तकनीक के सहारे सभी तैयारियां की जाएं उससे शायद ही कोई असहमत हो। भारत को विकसित और सबल राष्ट्र के अपने सपने को पूरा करने के लिए यह आवश्यक है कि सीमाओं पर शांति रहे। ऐसा तभी संभव है जब उन देशों को सही संदेश दिया जा सकेगा जो प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से भारत को अस्थिर करने की कोशिश करते रहते हैं। यह एक सच्चाई है कि कुछ देश बातें तो मित्रता की करते हैं, लेकिन उनकी करनी उनकी कथनी से मेल नहीं खाती।
इसका ताजा उदाहरण पाकिस्तान से लगी सीमा पर पिछले कुछ दिनों से व्याप्त अशांति है। निश्चित रूप से आज के युग में यह नहीं कहा जा सकता कि किसी पड़ोसी देश से युद्ध संभव है। हालात बदल चुके हैं और कोई भी देश युद्ध के मैदान में आमने-सामने नहीं आना चाहेगा, लेकिन यह भी सही है कि परोक्ष युद्ध के जो तरीके अपनाए जा रहे हैं उनकी अनदेखी नहीं की जा सकती। इस सच्चाई से कोई मुंह नहीं मोड़ सकता है कि भारत पिछले लगभग दो-तीन दशक से छद्म युद्ध का सामना कर रहा है। इस छद्म युद्ध का सबसे बड़ा केंद्र पड़ोसी देश पाकिस्तान है। वहां की खुफिया एजेंसी आइएसआइ की ऊर्जा इसी में खपती है कि कैसे भारत को अस्थिर किया जा सके। वह अपनी कोशिशें इसीलिए नहीं छोड़ पा रही है, क्योंकि छद्म युद्ध का जैसा जवाब दिया जाना चाहिए वैसा नहीं दिया जा पा रहा है।
यह सही है कि पाकिस्तान के साथ जो भी विवाद हैं उनका समाधान बातचीत के जरिये ही संभव है, लेकिन तथ्य यह है कि पाकिस्तान शांतिपूर्ण तौर-तरीकों के लिए आगे बढ़ने के लिए तैयार नहीं दिखाई देता। यह समय की मांग है कि भारत अपनी सुरक्षा के मामले में न केवल सबल हो, बल्कि आत्मनिर्भर भी। यह निराशाजनक है कि इसके पहले की सरकारों ने इस ओर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया और यही कारण है कि एक ओर तो हम महाशक्ति बनने की बातें करते हैं और दूसरी ओर अपनी रक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए विदेशों पर निर्भर रहते हैं।
यह ठीक बात नहीं कि वर्तमान में भारत हथियारों का सबसे बड़ा आयातक देश बन गया है। यह आवश्यक ही नहीं, बल्कि अनिवार्य है कि भारत अपनी रक्षा जरूरतों को खुद ही पूरा करने में सक्षम हो। इस दिशा में कई योजनाएं-परियोजनाएं जारी हैं, लेकिन उनकी प्रगति संतोषजनक नहीं है। मोदी सरकार ने इस दिशा में जो कदम उठाए हैं वे संतोषजनक हैं, लेकिन यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि हथियारों के मामले में हम आत्मनिर्भर हों। जब तक ऐसा नहीं होता तब तक रक्षा खरीद का जो तंत्र है उसे दुरुस्त करना होगा। इस संदर्भ में हाल ही में पूर्व नौसेना प्रमुख ने जो सवाल खड़े किए हैं उनकी अनदेखी करना कठिन है।
इस पर विचार होना चाहिए कि क्या कारण है कि रक्षा सौदों के पूरा होने में जरूरत से ज्यादा देर होती है और करीब-करीब हर रक्षा सौदा विवाद का विषय बनता है? जिन कारणों से ऐसा होता है उनका प्राथमिकता के आधार पर निवारण करना जरूरी है। भारत की प्रगति के लिए यह आवश्यक है कि उसके आसपास शांति बनी रहे। शांति का माहौल कायम रखने के लिए भारत को अपनी सैन्य ताकत का परिचय देने में सक्षम होना होगा।